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मौलिक अधिकारों और कानून की समझ ने हमें पुलिस स्टेशन पर पीड़ितों की शिकायतें दर्ज करने में मदद की है।
Story Submitted by: Usha Agarwal

इस प्रशिक्षण के ज़रिये से पहली बार संविधान को इतनी बारीख़ी से जानने को मिला। क्यूंकि हम महिला मुद्दों पे काम करते है इसलिए कभी कभी महिलाओं पे अत्याचार के इन्साफ के लिए भावनाओ में आके कुछ घोर कदम उठा लेते थे, लेकिन प्रशिक्षण में जब ये सीखा की संविधान तो सभी के लिए है, हर एक व्यक्ति क़ानून के समक्ष समान है तो हम उसके साथ भेदभाव क्यों करे? यदि वो पुरुष है तो ज़रूरी नहीं की वो गलत ही हो और यदि वो अपराधी होगा तो उसका फैसला कानून करेगा, मेरा काम है कानून के समक्ष अपना केस रखना।
ये मानव अधिकार की लड़ाई के लिए बहुत बड़ी समझ बनी है।मैं अपने क्षेत्र की महिलाओं के साथ भी निरंतर ट्रेनिंग कर रही हूँ। हाल ही में एक महिला जो की घरेलु हिंसा का शिकार थी, उसने अपने पति के समक्ष आवाज़ उठाई, उसकी कहानी सुनके मुझे लगा की चलो ये महिलाओं अपने आप को अधिकारों के काबिल तो समझना शुरू कर ही रही है। अभी तो बहुत लम्बा सफर है। हमारे मौलिक अधिकारों की समझ, कानून की समझ का फायदा हमें पुलिस थाने में पीड़िताओं की शिकायत दर्ज़ करने में भी हुई।
यदि वो मनाही करते भी है तो हमने पूरी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए, सही धाराओं का वर्णन किआ और उन्हें शिकायत दर्ज़ करनी ही पड़ी। मैं एक ऐसे परिवार से आती हूँ जहाँ पुलिस का सामना करना एक बहुत ही निराशाजनक समझा जाता था और आज इतने प्रशिक्षण के बाद मैं इतनी सक्षम हूँ की ना ही सिर्फ मैं थाने जाती हूँ बल्कि वहां पे लोगों को इन्साफ दिलाने में भी मदद कर पाती हूँ , और ये भी समझ बनी है की पुलिस वाले भी तो अपना काम कर रहे है, इसीलिए मुझे उनसे द्वन्द में नहीं बल्कि उनके साथ मिलकर काम करना है।