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तनुश्री: जो भरोसे से चलती हैं और मूल्यों से काम करती हैं

  • Writer: We, The People Abhiyan
    We, The People Abhiyan
  • Nov 14
  • 3 min read
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जब तनुश्री पहली बार असम के बारपेटा ज़िले के पाकाबेतबाड़ी ब्लॉक पहुँचीं, तो वहाँ का हाल देखकर उनका दिल भारी हो गया। चारों तरफ़ पानी ही पानी - खेत डूबे हुए, सड़कें गायब, और कुछ गाँव तो मानो पानी में समा गए थे। यह हर साल कि कहानी बन चुकी थी, एक मौसम में लोग खेती करते, और अगले में सबकुछ बह जाता। घर, मवेशी, फसलें... यहाँ तक कि उम्मीद भी। बच्चे ऐसे माहौल में बड़े हो रहे थे जहाँ कल का कोई भरोसा नहीं था।


यह उनकी SESTA में पहली पोस्टिंग थी - समाजशास्त्र में मास्टर्स के बाद उन्होंने यहाँ काम शुरू किया था। मुश्किलें उन्होंने पहले भी देखी थीं, लेकिन बारपेटा ने उन्हें नए मायनों में परखा। यही जगह थी जहाँ उनके मूल्य, उनका धैर्य, और लोगों के साथ काम करने का असली इम्तिहान शुरू हुआ।

गुवाहाटी में पली-बढ़ी तनुश्री ने अपने घर में हमेशा सादगी और सिद्धांत देखे थे। पिता लोगों की मदद करते थे, और दादा की आज़ादी की लड़ाई की कहानियाँ बचपन से सुनती आई थीं। शायद वहीं से उनके भीतर यह बात बैठ गई थी काम ऐसा करो जो मायने रखे, जो असर छोड़े। “मेरे काम के नतीजे मुझे सोचने पर मजबूर करें - कि कहाँ ठहरना है, और कहाँ और मेहनत करनी है।”


यही सोच लेकर वो SESTA (Seven Sisters Development Assistance) से जुड़ीं। उनका काम था खेती, पशुपालन और उद्यमिता के ज़रिए गाँवों की आजीविका मज़बूत करना। लेकिन जल्दी ही उन्हें अहसास हुआ कि यह आसान नहीं होगा। पीढ़ियों से लोग बाढ़ से जूझते रहे थे, शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी थी, और औरतों को परंपराओं ने बाँध रखा था। नए तरीक़े अपनाने को कहना, मानो उनसे सबकुछ दाँव पर लगाने को कहना था। कुछ लोग आगे आए, लेकिन ज़्यादातर लोग झिझकते रहे।  तब तनुश्री ने महसूस किया कि सिर्फ़ जानकारी देने से कुछ नहीं बदलता, भरोसा बनाना ज़रूरी है।तुम्हें खुला रहना पड़ता है, कभी-कभी संवेदनशील भी होना पड़ता है,” वो कहती हैं। “लोग सच्चाई पर भरोसा करते हैं। असली काम तो तभी शुरू होता है।”


तनुश्री की ईमानदारी और भरोसे ने उन्हें लोगों के क़रीब ला दिया। उन्होंने उनकी बातें सुनीं, समझीं, और उन्हीं की ज़रूरतों के हिसाब से समाधान बनाए। पर सबसे मुश्किल था, अधिकार और स्वामित्व जैसी बातें समझाना। जब रोज़ का संघर्ष ज़िंदा रहने का हो, तो ‘हक़’ जैसी चीज़ें बहुत दूर लगती हैं।


इसी बीच उन्हें मौका मिला वी द पीपल अभियान के साथ संविधान पर आधारित एक प्रशिक्षण में शामिल होने का।  वहाँ उन्होंने समानता, गरिमा और अधिकारों के बारे में बहुत आसान, खेलों के ज़रिए सीखने का तरीका देखा। उन्हें ख़ास तौर पर पसंद आई आइलैंड एक्टिविटी जहाँ लोग मिलकर अपने द्वीप के नियम बनाते हैं, भरोसे और संवाद पर। वो सोचती हैं, कि अगर लोग अपने गाँव के लिए भी ऐसे ही सोचें, तो बदलाव मुमकिन है।धीरे-धीरे, उन्होंने यही तरीके बारपेटा में अपनाए -  बातचीत, अभ्यास और भागीदारी के ज़रिए भरोसा बनाते हुए।

कुछ साल बाद आज, जब वो पीछे देखती हैं, तो उन्हें उस सफ़र का असर दिखता है। अब वो असम और पूरे उत्तर-पूर्व में काम संभालती हैं, संगठनों को मज़बूत करती हैं, महिला नेताओं को ट्रेन करती हैं, और शासन, लेखा-जोखा और क्षमता-विकास पर वर्कशॉप लेती हैं। अब तक लगभग 2000 लोग उनके प्रशिक्षणों से गुज़र चुके हैं। लेकिन उनके लिए असली सफलता आंकड़ों में नहीं है, वो उन छोटे पलों में है: एक दीदी का दूसरी दीदी को बुनाई सिखाना, किसी महिला का अपने घर के पिछवाड़े मुर्गियाँ पालना शुरू करना, या किसी गाँव का बाहरी मदद का इंतज़ार किए बिना खुद नए तरीके अपनाना। ये छोटे-छोटे बदलाव ही उनके मूल्यों की सबसे बड़ी पहचान हैं। 


बाढ़ आज भी आती है, सिस्टम की चुनौतियाँ भी हैं, लेकिन तनुश्री का रास्ता वही है कि मेहनत का मक़सद होना चाहिए, और मूल्यों की दिशा नहीं खोनी चाहिए। हर बातचीत, हर वर्कशॉप, हर साझा सीख उनके लिए उस धागे का हिस्सा है जो ज्ञान को भरोसे और ईमानदारी से जोड़ता है। वो चाहती हैं कि आने वाले समय में और सीखें, और बेहतर फ़ैसिलिटेटर बनें, और इस सफ़र में और ज़्यादा महिलाओं को साथ लेकर आगे बढ़ें।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.

 
 
 

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