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शिशपाल: बदलाव के लिए लड़ने वाला अकेला योद्धा

  • Writer: We, The People Abhiyan
    We, The People Abhiyan
  • May 19
  • 4 min read


राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गाँवों में, जहाँ असमानता और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, वहाँ शिशपाल पिछले दो दशक से गरीब और वंचित लोगों की मदद कर रहे हैं। वे आदिवासी समुदायों, महिलाओं, छात्रों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए निरंतर काम कर रहे हैं। उनके लिए समाज सेवा केवल पेशा नहीं, बल्कि एक जीवंत उद्देश्य है, जिसे वे पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं।


शिशपाल की बदलाव की यात्रा तब शुरू हुई, जब वे केवल बीस वर्ष के थे और पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने अपने आसपास के समाज में फैली समस्याओं को करीब से देखा। महिलाओं का घर से बाहर न निकलना, बच्चों की पढ़ाई का पैसों की कमी के चलते छूट जाना, और श्रमिकों का सरकारी सुविधाओं से वंचित रहना — इन सबने उन्हें गहराई तक प्रभावित किया। उसी समय उन्होंने संकल्प लिया कि वे समाज के कमजोर वर्गों के लिए काम करेंगे। वे कहते हैं, "पैसों के लिए काम करना मुझे कभी अच्छा नहीं लगा, बस किसी के काम आ जाऊँ, यही मेरे लिए काफी है।" शुरुआत में जो भावना दूसरों की मदद करने की थी, वह धीरे-धीरे आजीवन संकल्प में बदल गई।


समय के साथ यह सेवा उनका जीवन बन गई। उन्होंने हजारों लोगों को पेंशन, छात्रवृत्ति और श्रमिक पहचान पत्र दिलवाने में सहायता की, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सका। उन्होंने लोगों के सम्मान और अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष किया। कई बार व्यवस्था की जटिलताओं का सामना करते हुए भी उन्होंने अपने प्रयासों में कभी कमी नहीं आने दी।


वर्षों तक बिना थके कार्य करने के बावजूद शिशपाल को यह महसूस हुआ कि अगर उन्हें अपने कार्य को और प्रभावी बनाना है, तो संविधान और अधिकार आधारित दृष्टिकोण की गहरी समझ आवश्यक है। इसी दिशा में उन्हें 'वी, द पीपल अभियान (WTPA)' के प्रशिक्षण में भाग लेने का अवसर मिला। यह प्रशिक्षण उनके लिए एक नई दृष्टि का स्रोत बना। वे कहते हैं, “मैंने संविधान को कभी इतनी गहराई से नहीं समझा था जितना इस कार्यशाला के दौरान जाना। इसमें खेल, गतिविधियाँ और नाट्य रूपांतरण के माध्यम से विषय को रोचक तरीके से समझाया गया।”



'वी, द पीपल अभियान' का प्रशिक्षण उनके कार्य में एक सहायक शक्ति बना। इसने उन्हें सिखाया कि रोजमर्रा की समस्याएँ केवल शिकायतें नहीं हैं, बल्कि ये उनके संवैधानिक अधिकारों से जुड़ी हुई हैं। इससे उन्हें समस्याओं पर प्रभावी ढंग से कार्रवाई करना सीखने में मदद मिली। शिशपाल के भीतर पहले से मौजूद सेवा भाव और उनके सामाजिक कार्यों के अनुभवों को इस प्रशिक्षण ने और मजबूती प्रदान की।


एक बार शिशपाल का गाँव गहरे जल संकट से जूझ रहा था। पहले की तरह समस्या को चुपचाप सह लेने के बजाय, इस बार शिशपाल ने इसे जीवन और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए एक ठोस और विस्तारपूर्वक आवेदन तैयार किया। उन्होंने पानी की कमी को मानव गरिमा और स्वास्थ्य के अधिकार से जोड़ा। यह केवल एक साधारण शिकायत नहीं थी, बल्कि एक सशक्त संवैधानिक दावा था, जिसे नज़रअंदाज करना अब मुश्किल था।


उन्होंने यह आवेदन एक 'रात्रि चौपाल' के दौरान प्रस्तुत किया, जिसमें जिला कलेक्टर भी उपस्थित थे। लेकिन शिशपाल के लिए केवल आवेदन देना ही पर्याप्त नहीं था। वे लगातार खंड विकास अधिकारी, बजट अधिकारी और इंजीनियरिंग विभाग से मिलते रहे और जब तक समाधान नहीं निकला, तब तक प्रयास करते रहे।

उनकी मेहनत रंग लाई। शिशपाल बताते हैं, “कलेक्टर ने आश्वासन दिया कि एक-दो महीने में पानी आ जाएगा। पाइपलाइन का सामान आ चुका है।”



उसी दिन उन्होंने एक और समस्या को प्रमुखता से उठाया — एक कीचड़ भरी सड़क, जिससे बच्चे स्कूल जाते थे। उन्होंने इसके लिए भी विस्तार से आवेदन लिखा और निरंतर फॉलोअप किया। बीडीओ और बजट अधिकारियों से मिलकर लगातार प्रयास करते रहे। शिशपाल बताते हैं, “सड़क का काम मार्च के बाद शुरू हो जाएगा।” यह उनके दृढ़ संकल्प और संघर्ष का परिणाम था।


उनके गाँव के लिए, जहाँ व्यवस्थागत कमियां एक आम बात थी, यह घटनाएँ इस बात का प्रमाण बनीं कि जब लोग अपने अधिकारों को समझते हैं और संगठित और संवैधानिक  तरीके से मांग करते हैं, तो व्यवस्था सुनती भी है और निश्चित रूप से सहयोग भी करती है।


'वी, द पीपल अभियान' का प्रशिक्षण उनके लिए एक प्रेरक सहायक बन गया, जिसने उनके पहले से चल रहे प्रयासों को एक संवैधानिक दृष्टिकोण और रणनीतिक गहराई प्रदान की। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि मूल शक्ति शिशपाल की वर्षों की मेहनत, निष्ठा और अटूट प्रतिबद्धता ही रही।इस प्रशिक्षण ने  उनके पहले से चले आ रहे कार्यों में एक नई सोच और ऊर्जा भरने का कार्य किया है।

समाज सेवा के क्षेत्र में उनका काम केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने 50-60 नए कार्यकर्ता भी तैयार किए, जो आज विभिन्न गाँवों में समाज सेवा का काम कर रहे हैं। उनके लिए समाज सेवा कोई पद या पहचान पाने का साधन नहीं है। उनका एकमात्र सपना है — कोई भी इंसान अपने अधिकारों से वंचित न रहे क्योंकि उसे कभी उसके अधिकार बताए ही नहीं गए।

वे कहते हैं, "सीखना कभी नहीं रुकना चाहिए। जितनी ज़्यादा जागरूकता होगी, समाज उतना ही मजबूत बनेगा।" शिशपाल का जीवन इस बात का उदाहरण है कि जब इरादे मजबूत हों और सेवा का जज़्बा सच्चा हो, तो एक व्यक्ति भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.

 
 
 

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