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आवाज़. हक़. प्रतिरोध.

  • Writer: We, The People Abhiyan
    We, The People Abhiyan
  • 2 days ago
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जब यह खबर फैली कि पुलवारी की नाल अभयारण्य के आसपास का आरक्षित वन क्षेत्र टाइगर प्रोजेक्ट में शामिल किया जा रहा है, तो गांवों में भ्रम और डर फैल गया। इसका क्या मतलब है? क्या लोग अपनी ज़मीन खो देंगे? उनसे बिना पूछे यह फ़ैसला कैसे हो गया? अब आगे क्या होगा?

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें - सिवाय धनराज के।

धनराज ने गांववालों को इकट्ठा किया और शांति से समझाया कि टाइगर प्रोजेक्ट का मतलब क्या होता है, यह उनके जीवन को कैसे प्रभावित करेगा, और कैसे 1996 का पेसा (PESA - अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों का विस्तार) कानून उन्हें अपने संसाधनों के प्रबंधन में हिस्सा लेने का अधिकार देता है। फिर सभी ने मिलकर एक ठोस ज्ञापन तैयार किया - जिसमें विस्थापन के ख़तरों और उनके कानूनी अधिकारों के उल्लंघन को साफ़-साफ़ लिखा गया। यह ज्ञापन जनजातीय कार्य मंत्री को भेजा गया। जब कोई जवाब नहीं आया, तो धनराज ने और आगे बढ़कर उदयपुर के सांसद को और फिर केंद्र सरकार को भी लिखा। इस बार संविधान की भाषा में लिखी गई आवाज़ सुनी गई। यह इलाका टाइगर प्रोजेक्ट की सूची से हटा लिया गया।

लेकिन यह उनकी पहली लड़ाई नहीं थी - और न ही आख़िरी।

धनराज, उदयपुर के फलासिया गांव से एक जमीनी कार्यकर्ता हैं। स्वयं एक आदिवासी, वह जानते हैं कि सत्ता कैसे चलती है - और कैसे अक्सर उनके लोगों को अनदेखा कर देती है। जिन गांवों में वे काम करते हैं, वहाँ लोग आज भी उन चीजों के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो उनका हक़ है: बुनियादी शिक्षा, न्यायसंगत मज़दूरी, काम करने लायक स्कूल और गरिमापूर्ण रोज़गार। संविधान आदिवासियों को स्थानीय शासन में भागीदारी का अधिकार तो देता है, लेकिन ज़्यादातर लोग इससे अनजान हैं - और इसलिए उनकी आवाज़ कहीं पहुँच नहीं पाती । न पंचायतों में, न विधानसभाओं में, न नीतियों में। टाइगर प्रोजेक्ट तो बस उस चुप्पी का एक और उदाहरण था।

“लोकतंत्र में तो आवाज़ उठानी ही चाहिए,” वे कहते हैं।

और धनराज लगातार अपनी आवाज़ उठा रहे हैं - संविधान के ज़रिए और अपने मौलिक अधिकारों के ज़रिए।

संविधान उनकी ज़िंदगी में तब आया जब उन्होंने वान उद्दान में काम करना शुरू किया, जहां उन्होंने आदिवासियों और वनवासियों के कानूनी अधिकारों को समझा। लेकिन यह समझ तब और गहरी हुई जब उन्होंने उदयपुर की आस्था संस्थान के साथ काम शुरू किया। यहीं से उन्होंने संवैधानिक मूल्यों पर काम करना शुरू किया। फिर, उन्होंने 'वी द पीपल अभियान' का प्रशिक्षण लिया।

इस प्रशिक्षण ने उन्हें एक नई नज़र दी। पहली बार उन्होंने संविधान के अनुच्छेदों, कर्तव्यों और अधिकारों को अपने फील्डवर्क से जोड़ा। और इसके बाद से बहुत कुछ बदल गया। उन्होंने कई ज्ञापन लिखे - सार्वजनिक पुस्तकालय खोलने के लिए, स्कूल की बेहतर व्यवस्था के लिए, नई कक्षा निर्माण के लिए, और टाइगर प्रोजेक्ट को रोकने के लिए। इन ज्ञापनों में उन्होंने अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) को जोड़ा। इसके बाद से धनराज थमे नहीं हैं।

लेकिन वे संविधान को केवल एक क़ानूनी दस्तावेज़ नहीं मानते - वे इसे संवाद की भाषा बनाते हैं। मुख्यतः काथूदी आदिवासी समुदाय के साथ काम करते हुए धनराज तीन पंचायतों - गुराड, आंजरोली और पानरवा में नियमित रूप से जाते हैं, जहां वे लगभग एक लाख लोगों तक पहुंच बनाते हैं। वे कभी भी क़ानूनों से शुरुआत नहीं करते। पहले वे कहानियों से शुरू करते हैं - लोगों के साथ बैठते हैं, चाय पीते हैं, उनकी ज़िंदगी सुनते हैं और फिर धीरे से बताते हैं कि उनके पास भी अधिकार हैं। कि संविधान उनका भी है।

यह तरीका असरदार साबित हो रहा है। अब आदिवासी युवा संवैधानिक जागरूकता के साथ आगे आ रहे हैं - ग्राम सभाओं में अपनी बात रख रहे हैं, और अपनी आवाज़ों को ग्राम पंचायत से लेकर ज़िला कलेक्टर और जनप्रतिनिधियों तक पहुँचा रहे हैं।

"जब मैं आवाज़ उठाता हूं, तो कहते हैं - सीधे दफ्तर में आकर बोलो," वे बताते हैं।

दबाव बना रहता है। लेकिन उनका हौसला भी उतना ही मज़बूत है।

उनकी मेहनत ने यनहे कुछ बेहतरीन उपलब्धियाँ भी दिलाई हैं।वर्ष 2022 में, पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में उनके कार्य के लिए धनराज को उम्मेदमल लोढ़ा पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साथ ही, उन्हें स्वतंत्र पत्रकारिता में योगदान और भामाशाह योजना के माध्यम से विद्यालय विकास में सहयोग के लिए उपखंड स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हुई।

और ज़्यादा लोगों तक पहुँचने के लिए, उन्होंने 'स्वतंत्र पत्रकार' बनकर डिजिटल पत्रकारिता और सोशल मीडिया को एक ज़रिया बनाया। वे एक घटना याद करते हैं - जब पंजाब नेशनल बैंक के एक कर्मचारी ने एक बुज़ुर्ग से बदसलूकी की और उसका पेंशन रोक दिया। धनराज ने उस घटना को रिकॉर्ड किया, ऑनलाइन डाला और इसे सिर्फ बदसलूकी नहीं बल्कि गरिमा और अधिकार का उल्लंघन बताते हुए प्रस्तुत किया। प्रतिक्रिया तुरंत मिली - खाता खुला, पेंशन मिली और कर्मचारी ने माफ़ी मांगी।

धनराज ने कभी आवाज़ उठाना बंद नहीं किया और वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि बाकी लोग भी अपनी आवाज़ खोजें।

शायद इसका सबसे सुंदर उदाहरण उनकी वह नई पहल है जो अभी बन रही है - संविधान पाठशाला।


एक ऐसी जगह जहां बच्चे यह सीखते हैं कि समानता क्या होती है, न्याय क्यों ज़रूरी है, और अन्याय को कैसे पहचानें और चुनौती दें।


यह पाठशाला अभी नई है, संघर्ष कर रही है - लेकिन पूरी तरह धनराज के लोकतांत्रिक स्वप्न से भरी हुई है।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.


 
 
 

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