एक आरटीआई, एक कदम: लोगों के साथ मेरा सफर
- We, The People Abhiyan
- 8 hours ago
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सुभाष ने कभी नहीं सोचा था कि एक वर्कशॉप उसकी ज़िंदगी की दिशा बदल देगी। लेकिन 2013 में, भोपाल के हमीदिया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान, यंगशाला के प्रशांत दुबे और रोली शिवहरे द्वारा आयोजित सूचना का अधिकार (RTI) पर एक सत्र ने उसके सोचने का तरीका ही बदल दिया।
उन दिनों वह अपने सहपाठियों को देखता, जो स्कॉलरशिप फॉर्म, प्रमाण पत्र, और एडमिशन से जुड़ी फाइलों में उलझे रहते थे। वह खुद से पूछता, “क्या सरकारी दस्तावेज़ बनवाना इतना मुश्किल है?” लेकिन उस वर्कशॉप ने उसकी आँखें खोल दीं - पहली बार उसे एहसास हुआ कि आम नागरिक भी सरकार से सवाल पूछ सकते हैं, जवाब मांग सकते हैं, और अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं। उसी दिन उसने ठान लिया - वह RTI और सरकारी हेल्पलाइन का इस्तेमाल सीखकर लोगों की मदद करेगा।
तब से अब तक, सुभाष ने अकेले और कैंपों के ज़रिए 1,200 से ज़्यादा RTI आवेदन दाखिल करवाए हैं। जो काम कॉलेज के साथियों की मदद से शुरू हुआ था, वो अब एक बड़े आंदोलन का रूप ले चुका है। वह यंगशाला के साथ जुड़कर भोपाल के अलग-अलग इलाकों में “RTI जामघट” आयोजित करने लगा। शुरुआत में लोग झिझकते थे, लेकिन धीरे-धीरे वे अपनी परेशानियाँ बताने लगे - राशन कार्ड जो कभी नहीं आया, पेंशन जो महीनों से अटकी थी, बिजली के बिल जो गलत थे, या स्कॉलरशिप जो बीच में ही गायब हो गई। साथ मिलकर जब RTI डाली गई, तो लोगों को भरोसा हुआ कि सरकार जवाब देती है, जब उससे औपचारिक रूप से सवाल पूछा जाए।
सुभाष की सबसे बड़ी कोशिश यही रही कि RTI उन तक पहुँचे जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। इसके लिए वह बस्तियों और “पिठों” में जाने लगा, जहाँ रोज़गार मज़दूर सुबह काम की तलाश में जुटते हैं। वह उन्हें 181 महिला हेल्पलाइन, ऑनलाइन RTI पोर्टल, और शिकायत निवारण प्रणाली के बारे में आसान भाषा में समझाता। वह उन्हें यह बताता कि सरकार के नियम उनके लिए हैं, वे किसी एहसान के मोहताज नहीं हैं।
सुभाष का मानना है कि हर व्यक्ति, चाहे उसकी जाति, धर्म, वर्ग या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, अपने अधिकारों का दावा कर सकता है। उसका मकसद सिर्फ़ मदद करना नहीं, बल्कि लोगों को सशक्त बनाना है ताकि वे खुद अपनी लड़ाई लड़ सकें।
उसकी यात्रा में एक अहम मोड़ तब आया जब वह वी द पीपल अभियान से जुड़ा। वहाँ की ट्रेनिंग्स ने उसे कानूनी भाषा को आसान बनाना, असरदार आवेदन लिखना, और कानून को ज़मीनी मुद्दों से जोड़ना सिखाया।उसे जन कलेक्टिव विशेष रूप से पसंद आया - यह एक ऑनलाइन सत्र है जो हर महीने के आख़िरी शनिवार को होता है। सुभाष कहता है, “जन कलेक्टिव अपने आप में एक बेहतरीन पहल है। यह लोगों के जोड़ने, सीखने और विचारों का आदान-प्रदान करने का एक शानदार मंच है।”
इन अनुभवों ने उसे और मजबूत बनाया - खासकर उन स्थितियों में जब मुद्दे दस्तावेज़ों से आगे बढ़कर लोगों की ज़िंदगियों से जुड़े होते थे। कभी उसने बाल विवाह रुकवाया, कभी ज़रूरतमंद परिवारों की मदद की, हर बार उसने साबित किया कि अधिकारों की लड़ाई सिर्फ़ कागज़ी नहीं होती, यह गरिमा और जीवन की रक्षा की लड़ाई होती है।
चुनौतियाँ अब भी खत्म नहीं हुई हैं। सरकारी तंत्र की सुस्ती, अधिकारियों की देरी, रिश्वत की माँग - ये सब आम हैं। ऐसे समय में सुभाष के लिए उसका ज्ञान ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बन जाता है। वह लगातार लोगों को जागरूक करने के लिए काम करता है।
सुभाष ने ई - पोस्ट भोपाल नाम से एक इंस्टाग्राम पेज भी शुरू किया है, जहाँ वह सरकारी योजनाओं और नौकरी के अवसरों की जानकारी साझा करता है। आज उस पेज के 5,500 से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स हैं, और इनमें से कम से कम 55 युवाओं को नौकरी मिल चुकी है।
चाहे किसी को राशन कार्ड दिलवाना हो, बुजुर्गों की पेंशन सुनिश्चित करनी हो, या युवाओं को नए अवसरों से जोड़ना - सुभाष लगातार ऐसे प्रयासों में लगा है जो समस्याओं को आसान बनाते हैं और अधिकारों को सबके लिए सुलभ करते हैं।
उसका सपना साफ़ है -ऐसा समाज जहाँ महिलाएँ, बच्चे और हाशिये पर खड़े समुदाय गरिमा के साथ जी सकें, अपने अधिकारों को जान सकें, और उन्हें पाने से न डरें।
तब तक, वह चलता रहेगा - एक RTI, एक कैंप, और एक बातचीत के साथ।
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