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अब ग्राम सभा लिखती है!

  • Writer: We, The People Abhiyan
    We, The People Abhiyan
  • Sep 1
  • 3 min read
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झारखंड के लुदरू गांव में अब हर ग्राम सभा की बैठक लिखित रूप में दर्ज की जाती है। चर्चाओं को दस्तावेज़ों में दर्ज किया जाता है, उन्हें स्वीकारा जाता है और उन पर कार्रवाई भी होती है।

यह बदलाव लेकर आए जनार्दन सिंह जो एक लंबे समय से समुदाय में कार्य कर रहे साथी। वे लुदरू में रहते हैं, जो  खूंटी ज़िले के हरे-भरे जंगलों के बीच बसा एक गांव है, जहां 300 से 400 परिवार निवास करते हैं। नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमी के कारण यह गांव कई समस्याओं से जूझता है - खराब सड़कें, बढ़ती स्कूल ड्रॉपआउट दरें, और युवाओं में नशे की बढ़ती लत। लेकिन इन सभी कठिनाइयों के बीच जनार्दन ने हार नहीं मानी। 

PHIA फाउंडेशन से 2021 से जुड़े एक फेलो के रूप में जनार्दन शुरू से ही सामुदायिक कार्यों के लिए काम कर रहे हैं। 1998 से उन्होंने कर्रा ब्लॉक में स्वयं सहायता समूह (SHG) का गठन करना शुरू किया। समय के साथ वे अपने समुदाय की महिलाओं, युवाओं और बच्चों के लिए एक मज़बूत सहारा बन गए। वे लगातार उन्हें अपनी आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी बात गांव की शासन व्यवस्था तक पहुँचे।

उनके दिल के सबसे करीब हैं - स्थानीय शासन को मज़बूत करना। 

"हम उन लोगों को चुनते हैं जो वंचित समुदाय से आते हैं और उन्हें पंचायतों में उनकी बात रखने का हक़ नहीं मिलता। हमारा काम यही है कि उनकी आवाज़ ग्राम सभा तक पहुंचे," वे कहते हैं।

2023 में जनार्दन ने वी, द पीपल अभियान का प्रशिक्षण लिया। सामुदायिक कार्य में अनुभव होने के साथ साथ, इस प्रशिक्षण ने उनके लिए नए तरीके खोले। इस प्रशिक्षण ने उनके काम को एक ढांचा, एक संवैधानिक नज़रिया दिया। उन्हें टापू गतिविधि विशेष रूप से याद है, जिसमें प्रतिभागियों ने मिलकर एक आदर्श द्वीप की कल्पना की और अपना खुद का संविधान लिखा। इस गतिविधि के माध्यम से उन्हें ग्राम पंचायतों में बातों को लिखना और सक्रिय चर्चा की अहमियत समझ में आई।

हालांकि, दस्तावेज़ीकरण की प्रक्रिया आसान नहीं थी।

"गांव के बुज़ुर्ग लिखना नहीं जानते, और जो युवा लिखना जानते हैं, वो आते नहीं।"

धीरे-धीरे लेकिन निरंतर प्रयासों से जनार्दन ने युवाओं और महिलाओं को ग्राम सभा की बैठकों में शामिल करना शुरू किया। उन्हें पहचाना, उनके अधिकारों को समझाया और उन्हें आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया। इसका परिणाम ये हुआ कि आज की ग्राम सभाएं, जहां महिलाएं और युवा अक्सर अनुपस्थि होते थे - अब ऐसी जगह बन गई हैं जहां वे साथ आते हैं, अपनी चिंताओं को साझा करते हैं और समाधान सुझाते हैं। और अब ग्राम पंचायत की बातें लिखित भी होने लगी। 

"अब लगता है जैसे संविधान के रूप में एक जरिया मिल गया है," "पहले लोगों को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं थी, अब वे खुद अपने मुद्दे लेकर पंचायत पहुँचते हैं।"

एक सिटीजन चैंपियन के रूप में जनार्दन के प्रयासों ने स्पष्ट और सार्थक बदलाव लाए हैं। उन्होंने 1,400 से 1,500 लोगों को संवैधानिक मूल्यों, अधिकारों और नागरिक भागीदारी के महत्व पर प्रशिक्षित किया है। वे घर-घर जाकर जागरूकता अभियान चलाते हैं, सूचनाओं के पर्चे बाटतें हैं, प्रशिक्षण आयोजित करते हैं और सार्वजनिक चर्चाओं का संचालन करते हैं।

अब वे फॉर्मल तरीकों का भी आत्मविश्वास से उपयोग करते हैं - चाहे वह याचिकाएं लिखना हो या पंचायत से ज़िला स्तर तक मुद्दों को आगे बढ़ाना।

भविष्य को लेकर उन्हे कई उम्मीदें हैं:

"अगर हमें और ऐसे कार्यक्रम मिलते रहें तो हम और अच्छा काम कर पाएंगे।"

जनार्दन की दुनिया में बदलाव सिर्फ कल्पनाओं में नहीं है।वह पंचायत कार्यालय तक चलता है, ग्राम सभा में बैठता है, किशोर स्वास्थ्य के लिए बहस करता है, बैठक की कार्यवाही दर्ज करता है, और युवाओं को नेतृत्व के लिए आगे लाता है।

और शायद, यही बात उन्हें सिर्फ़ एक सिटीजन चैंपियन नहीं, बल्कि लोकतंत्र का एक निर्माता बनाती है — एक लिखी गई पंक्ति के माध्यम से।


The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.


 
 
 

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