बरगद के पेड़ के नीचे आवाजें: संविधान पिकनिक
- We, The People Abhiyan
- 2 days ago
- 4 min read

मध्य प्रदेश के एक शांत जिला उमरिया के आकाशकोट में, जो पहाड़ों में बसा हुआ है, जहाँ कि जमीन पथरीली है वहां जिंदगी आसान नहीं है । यहाँ की सड़कें टूटी हुई हैं, लोगों के पास पानी कम है, और खेती सिर्फ बारिश पर निर्भर है । लेकिन इसी कठिनाई के बीच एक उम्मीद की कहानी खिलती है — अजमत उल्ला खान की कहानी।
अजमत का परिवार बड़ा है — पाँच भाई, एक बहन, और माता-पिता। घर से सम्पन्न थे, पिता जी सरकारी नौकरी में रहे है, उन्हें कोई कमी नहीं रही है, अच्छे से अपनी जिन्दगी में मस्ती के साथ अपना बचपन गुजर रहे थे, पर दिल — सवालों, जिज्ञासा और दया से भरा था । वो सवाल जो बार बार परेशान कर रहा है वो था एकता का सवाल, वो कहते है अल्लाह एक है तो हम अलग कैसे हो सकते है |
वो बताते है कि उनका मन पढाई में कभी नहीं लगा, हमेसा से उन्हें यह पढाई एक जबरजस्ती करने जैसा लगा इसलिए वो दसवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया और जब समझ बनी तो यह कि पढाई और समाज दोनों जरुरी है इसलिए वो फिर पढाई कि सुरुआत 5 साल बाद किये | पर वो कहते है कि सिर्फ पढाई डिग्री के लिए नहीं अपने समझ के लिए होनी चाहिए |
अजमत कहते हैं, “इस देश में आज़ादी मिली है, लेकिन आज़ादी का मतलब सबके लिए एक जैसा नहीं है।”
यह सोच तब बदली जब 2003 में एक युवा शिविर में गए। वहाँ जो लोग थे, उनकी बातें दिल के बहुत करीब लगीं। वे जो कहते थे, वही करते थे — झूठ नहीं, नुकसान नहीं, सब के साथ कि बात थी और सब इन्सान के तौर पर दिखाई देते रहे है । ये बातें केवल सुनाने के लिए नहीं, जीने के लिए थीं।
इस संगठन से जुडाव हुआ तो वो पहुचे आकाशकोट के जंगेला, एक रातजब वो जंगेला गाँव में रात कि नींद ले रहे थे तो दो बजे अचानक बाहर आवाज़ सुनाई दी किसी के चलने कि, वो बाहर निकले और उन्होंने देखा कि लोग खामोशी से खाली बर्तन लेकर पानी लेने जा रहे हैं ।
अजमत ने पूछा, “इतनी रात को कहाँ जा रहे हो ?”
एक महिला बोली, “अभी नहीं गए तो पानी नहीं मिलेगा ।”
यह बात समझ नहीं आई... पानी नहीं मिलेगा ?
दुसरे ने कहा कि हमारे गन में पानी नहीं है अगर अभी हम लेने न जाएँ तो सुबह आप को पिने को भी पानी न मिलेगा |
जंगेला गाँव में लोग दो किलोमीटर दूर पानी लेने जाते थे — अंधेरे में, खामोशी से, और मजबूरी में। आजमत ने ये देखा और अंदर एक तूफान सा उठा।
उन्होंने सोचा, “यह सिर्फ गरीबी नहीं, यह अपमान है।”
और यहाँ से उन्होंने ठाना कि अब तो आगे समाज बनाने का काम करेंगे | फिर उन्होंने गांधी जी की किताबें पढ़नी शुरू की। बापू के विचारों में उन्होंने अपनी सोच देखी — अहिंसा, सत्य, और सामूहिक शक्ति। और समझ गए कि यही उनका काम है।
2003 से वह सर्वोदय के युवाओं राष्ट्रीय संगठन, “राष्ट्रीय युवा संगठन” के साथ काम कर रहे हैं । राष्ट्रीय युवा संगठन के साथ काम करते करते उन्होंने देश के अलग अलग कोने में जा कर गाँधी विचार हो फ़ैलाने का काम किया है | वर्तमान में उन्होंने अपनी संस्था “नवसृजन विकास संवाद समिति” बनाई, जो पास के 25 गांवों पर काम करती है। उनका मकसद है युवा और महिलाओं के समूह बनाना के आत्मशक्ति का निर्माण करना, गाँव में सभी के लिए पोषण, स्वास्थ्य, स्वरोजगार से जोड़ना और संविधानिक अधिकार कि जानकारी देना और असली समस्याओं से अवगत कराना।
लेकिन बदलाव आसान नहीं था ।
अजमत कहते हैं, “पहले लोग मिल-जुलकर रहते थे। अब हर कोई सिर्फ अपने लिए सोचता है। राजनीति ने गांव को बाँट दिया है।”
जब उन्होंने एक सामुदायिक पानी प्रणाली बनाने की कोशिश की, स्थानीय राजनीतिक लोग विरोध करने लगे। कहने लगे कि वह सिर्फ पैसे के पीछे हैं। प्रशासन भी समर्थन नहीं दे पाया, लोगों ने राजनितिक फायदे के लिए उनको काम करने के लिए रोका और धमकी भी मिली | समुदाय टूटता हुआ दिखा |
लोग अब बैठको में नहीं आ रहे थे, सब अपने अपने में व्यस्त रहे है, गाँव कि दिशा बदल रही थी, हिंसा, लुट, भुखमरी, पलायन, नशा सब आगे निकल रहा था,
तो अजमत ने एक नया तरीका अपनाया — जो खुशी और एकता पर आधारित था।

“संविधान पिकनिक”
हाँ संविधान पिकनिक |
इससे लोग एकत्र होने लगे और साथ आने लगे, हर महीने, अलग-अलग जाति, धर्म, लिंग और गांव के लोग खुले में मिलते हैं। साथ में खाना बनाते हैं, खेल खेलते हैं, और संविधान के मूल्यों पर बात करते हैं। कोई झूठा व्याख्यान नहीं, बस बातचीत।
अजमत कहते हैं, “यह पिकनिक नहीं, एक सोच है। लड़के-लड़कियाँ साथ खाना बनाते हैं, सब साथ बैठकर खाते हैं, उस सोच को चुनौती देते है जो समाज को धर्म, जाती और लिंग में बातते है । यही तो संविधान है — एकता, समानता, न्याय और बंधुता।”
2023 में उन्होंने वी, द पीपल अभियान (WTPA) की ट्रेनिंग में हिस्सा लिया। “टापू” एक्टिविटी और “पेन गेम” उनके लिए बहुत अहम थे। इससे उन्हें समझ आया कि वे अधिकारों पर काम तो कर रहे थे, लेकिन उनका स्रोत, संविधान का नाम नहीं लेते थे।
“अब जब हम संविधान का नाम लेते हैं, तो बात और मजबूत होती है।”
अजमत की मुहिम ने 25 गांवों में 10,000 से अधिक लोगों को छुआ है। वह अकेले नहीं काम करते। वे युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षित करते हैं, जो ये काम को मिलकर आगे बढ़ाते हैं।
अजमत कहते हैं, “मेरे पास फोन से ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन जब दिल में विश्वास हो, तो रास्ता खुद बन जाता है।”
उनकी आवाज़ ज़ोर से नहीं है, लेकिन उनका संदेश साफ़ है। उनका मानना है कि असली बदलाव सरकारी दफ्तरों में नहीं, बल्कि पेड़ों के नीचे, रसोई में, खेल के मैदान में, और उन लोगों के बीच होता है जो कभी एक-दूसरे को अजनबी समझते थे।
“यह देश तब बदलेगा जब लोग एक-दूसरे को दूसरा नहीं, अपना समझेंगे।”
अजमत उल्ला खान सिर्फ एक समाजसेवी नहीं हैं। वह हमें याद दिलाते हैं कि एक व्यक्ति क्या कर सकता है — दिल, हिम्मत और संविधान की ताकत से।
The above story has been written and published with the explicit consent of the individual involved. All facts presented are based on WTPA's direct interaction with the individual, ensuring accuracy and integrity in our reporting.
Comments