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संविधान हर व्यक्ति के जीवन से जुड़ा है, और असल में हम ही संविधान की आत्मा हैं।

"मुझे अक्सर यह लगता था कि संविधान तो देश चलाने के लिए होता होगा, एक आम नागरिक के जीवन में इसके क्या ही उपयोग होंगे, पर जब एक प्रशिक्षण के दौरान मैं संविधान की कुछ बातों से रूबरू हुआ तो मैंने यह जाना कि संविधान की आत्मा, तो हम सभी भारतीय हैं, और संविधान सिर्फ देश चलाने के लिए नहीं है बल्कि हमारे घरों के मसले सुलझाने के लिए भी हैं।
हम्म्में... माफ करिएगा, मैंने तो अपनी कहानी शुरू कर दी बिना आपको अपना परिचय दिए।तो मैं आपको अपना परिचय दे देता हूँ।
मेरा नाम विलियम जेकब है, और मैं झारखंड के गिरिडीह जिला अंतर्गत पचम्बा मिशन से हूँ। मैंने पत्रकारिता में एम.ए. किया है और अभी मैं अभिव्यक्ति संस्था के साथ जुड़ा हूँ। जैसा कि मैं आपसे कह रहा था, घर के अंदर की बात, मैंने अपनी पत्नी को नौकरी करने से रोक रखा था, पढ़ाई उनकी डबल एम.ए. है, पर जब भी वो अपनी नौकरी की बात करती, तो मैं उनकी बातों को टाल दिया करता था, क्योंकि मुझे लगा कि वो घर की चीजें संभाले, बच्चे हैं, उन्हें देखें, किसी को तो यह जिम्मेदारी उठानी होगी। "वी, द पीपल अभियान" के साथ प्रशिक्षण, "संविधान से समाधान" के दौरान मैंने यह समझा कि मेरा यह करना मेरी पत्नी की आज़ादी को छिन रहा है, और यह अधिकार तो किसी के पास नहीं है कि कोई किसी की आज़ादी छिन सके। आज मुझे खुशी हो रही है ये बताते हुए कि आप लोग जब ये पढ़ रहे होंगे, तब तक उन्हें उनका ज्वाइनिंग पत्र मिल चुका होगा। मेरे अंदर बदलाव की बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, मैंने अपने बड़े बेटे को कई बार इस बात पर डांट लगा दिया है क्योंकि उसका पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है, कभी मैंने उसकी मांशिक्ता और विचारों को जानने की कोशिश ही नहीं की। मुझे अपने इस काम पर खेद है और अब मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि उसकी बातों को सुनूं और उसके विचारों को भी समझूं।
यह तो वो बदलाव है जो मैंने अपने घर के अंदर महसूस किया, घर के बाहर, अब मैं ग्राम सभा की बैठक में लोगों से यह संविधान की समझ शेयर भी करता हूँ ताकि उन्हें पता चले कि मुखिया जी उन्हें जो सरकारी योजना का लाभ दिलवा रहे हैं, वो उनका हक़ है, नाकि वो उन पर आह्सान कर रहे हैं। लोगों को यही लगता है कि वृद्धा या विधवा पेंशन दिलवा कर मुखिया जी ने उन पर यह आह्सान किया है, जैसे कि वो पैसे मुखिया जी ने अपनी जेब से दिया हो। संविधान में स्थानीय सरकारों की क्या जिम्मेदारियां होंगी, इसका जिक्र भी किया गया है। मैं लोगों को यह समझाना चाहता हूँ कि उन्होंने अपना वोट देकर उन्हें मुखिया इन्हीं कामों को करने के लिए ही बनाया है और यह उनका अधिकार है कि मुखिया जी से सवाल करें जब तक उन्हें उनका अधिकार न मिले।
एक बार की बात है, हमारे यहाँ एक लड़के को झूठे केस में फँसा दिया गया था, तो मैंने एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें उन कानूनों और ऐक्ट्स का जिक्र करते हुए कि कैसे यह केस बेबुनियाद है और मेरी रिपोर्ट की काफी सराहना भी हुई। असल में हमें इस भ्रम को तोड़ना होगा कि संविधान तो सिर्फ संसद और न्यायालय के लिए बना है, आम नागरिकों को उससे क्या? इसी भ्रम ने हमें हमारे अधिकार और आधिकारियों से सवाल करने से वंचित रखा। संविधान हर व्यक्ति के जीवन से जुड़ा है, और असल में हम ही संविधान की आत्मा हैं। मैं इस प्रशिक्षण को सभी लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ, क्योंकि मेरी आँखें तो खुल रही हैं, और मैं अपने आसपास के लोगों की भी आँखें खोलना चाहता हूँ।"
विलियम जैकब ने Jharkhand CSO Forum के माध्यम से हमारी workshop में भाग लिया ।